वैष्णव तिलक और मोगरे की माला से हुआ विशेष श्रृंगार
महाकाल मंदिर के पुजारी पंडित महेश शर्मा ने जानकारी दी कि मंदिर के पट खुलते ही पुजारियों द्वारा गर्भगृह में विराजित समस्त देव प्रतिमाओं का पूजन किया गया। इसके बाद भगवान महाकाल का जलाभिषेक दूध, दही, घी, शक्कर और फलों के रस से बने पंचामृत से किया गया।
इसके पश्चात घंटाल बजाकर हरिओम का जल अर्पण किया गया और कपूर आरती संपन्न हुई। आज के श्रृंगार की विशेष बात यह रही कि बाबा महाकाल के मस्तक पर वैष्णव तिलक लगाया गया। साथ ही उन्हें मोगरे की माला पहनाई गई और नवीन मुकुट से श्रृंगारित किया गया।
महानिर्वाणी अखाड़े ने की भस्म अर्पण
बाबा महाकाल के ज्योतिर्लिंग को महानिर्वाणी अखाड़े द्वारा भस्म अर्पित की गई। इसके बाद कपूर आरती कर भोग भी लगाया गया। इस दौरान हजारों श्रद्धालुओं ने बाबा के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया और पूरे वातावरण को “जय श्री महाकाल” के नारों से गुंजायमान कर दिया।
क्या है निर्जला एकादशी का महत्व?
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। साल भर में 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन जब अधिकमास या मलमास आता है तो इनकी संख्या 26 हो जाती है। इन सभी में सबसे कठिन और पुण्यदायी व्रत निर्जला एकादशी को माना गया है, जो ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में आती है। इस दिन जल का भी सेवन नहीं किया जाता, इसलिए इसे “निर्जला” कहा जाता है। इस व्रत को रखने से साल भर की सभी एकादशियों का फल प्राप्त होता है।