जनरल ज़मान से बच कर… भारत ने एक साल पहले ही हसीना को किया था आगाह

बांग्लादेश में फैले अराजकता के बीच सोमवार को पीएम हसीना को आखिरकार इस्तीफा देना पड़ा। जान बचाने के लिए देश छोड़ने की भी नौबत आ गई और देश संभालने की जिम्मेदारी अब सेना ने ले ली है। हालांकि इन सब से पहले भारत ने एक साल पहले ही जनरल ज़मान को लेकर आगाह किया था। पिछले साल 23 जून, 2023 को बांग्लादेश के सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त किए जाने से पहले शीर्ष भारतीय अधिकारियों ने शेख हसीना को जनरल ज़मान के चीन की तरफ झुकाव को लेकर आगाह किया था। हसीना को जनरल वेकर-उस-ज़मान को सेना प्रमुख के रूप में नियुक्त करके भारतीय सुरक्षा एजेंसियों की सलाह पर ध्यान न देने की कीमत चुकानी पड़ी है।

देश में बढ़ते विरोध को रोकने के बजाय जनरल ज़मान ने शेख हसीना को देश छोड़ने की चेतावनी दी। 15 साल से प्रधानमंत्री पद पर काबिज हसीना को सेना ने सिर्फ 45 मिनट का समय दिया। जुंटा ने बीएनपी नेता खालिदा जिया को भी रिहा कर दिया गया। इस बात का सबूत है कि अब देश में जमात-ए-इस्लामी और इस्लामी छात्रशिबिर जैसे इस्लामी संगठन देश की कट्टरपंथी राजनीति में आगे आएंगे। इससे पहले शेख हसीना ने अप्रैल 2023 में ही संकेत दे दिया था कि वह जनवरी 2024 में होने वाले आम चुनाव नहीं लड़ना चाहती हैं। हालांकि और अपने समर्थकों के कहने के बाद वह बेमन से चुनाव मैदान में उतरी थीं। इस्लामवादियों और पश्चिमीं एजेंटों के खतरे को अच्छी तरह से जानते हुए हसीना नहीं चाहती थीं कि उनके परिवार में कोई भी उनका उत्तराधिकारी बने क्योंकि उन्हें पता था कि उनके विरोधी उन्हें मार देंगे। इस तरह हसीना इस्लामवादियों के खिलाफ एक मजबूत दीवार थीं जो सोमवार को सेना की साजिशों की वजह से आखिरकार ढह गई।

कट्टरपंथी छात्र हो सकते हैं सेना के खिलाफ

भले ही सेना और उत्साही कट्टरपंथी शेख हसीना के जाने का जश्न मना रहे हों लेकिन बांग्लादेश खुद पाकिस्तान, मालदीव और श्रीलंका की तरह आर्थिक संकट के कगार पर है और उसे इससे उबरने के लिए पश्चिमी देशों की मदद की जरूरत होगी। बेरोजगारी की दर को देखते हुए जेईआई से जुड़े कट्टरपंथी छात्र सेना के खिलाफ हो सकते हैं।

भारत के लिए बड़ी चुनौती

वहीं भारत के लिए शेख हसीना का इस्तीफा देना अच्छी खबर नहीं है। यह आशंका है कि कट्टरपंथी शासन पूर्वी मोर्चे से खतरा पैदा करेगा। मोदी सरकार बांग्लादेश में स्थिर अंतरिम सरकार बनाने के लिए अपना समर्थन पूरा देगी। भूटान को छोड़कर भारत के सभी पड़ोसी फिलहाल राजनीतिक उथल-पुथल का सामना कर रहे हैं और भविष्य में स्थिति और खराब होने की उम्मीद है। भारत के पास एकमात्र विकल्प बेहतर सुरक्षा और खुफिया जानकारी के माध्यम से सीमा पार की चुनौतियों से खुद को बचाना है।

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