
शिक्षक को समाज का मार्गदर्शक और राष्ट्र निर्माण का आधार माना जाता है। लेकिन माखननगर ब्लॉक की घटना यह दिखाती है कि आज शिक्षक का मान-सम्मान राजनीति और सत्ता की पहुँच से कहीं छोटा हो गया है। प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक राधेलाल मेहरा के साथ हुई घटना न केवल शिक्षा व्यवस्था बल्कि पुलिस और प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करती है।
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बीस दिन बीतने के बावजूद एफआईआर दर्ज नहीं
4 अगस्त 2025 को जनशिक्षक नारायण मीना निरीक्षण के लिए झालोंन स्कूल पहुँचे। वहाँ पाया कि हेडमास्टर सुनील शर्मा और दो महिला शिक्षिकाएँ 28 जुलाई से विद्यालय में उपस्थित नहीं थीं। जब जनशिक्षक ने फोन पर कारण पूछा, तो न केवल उनके साथ बल्कि शिक्षक राधेलाल मेहरा के साथ भी गाली-गलौज की गई। इस मामले की लिखित शिकायत चौकी प्रभारी और अजाक थाना दोनों को दी गई, लेकिन बीस दिन बीतने के बावजूद एफआईआर दर्ज करने का निर्णय तक नहीं लिया गया।
प्रशासन की भूमिका पर सवाल
पुलिस की निष्क्रियता इस घटना का सबसे बड़ा पहलू है। कई मामलों में पुलिस बिना जांच किए हरिजन एक्ट जैसे गंभीर प्रकरण तुरंत दर्ज कर देती है, लेकिन एक शिक्षक की शिकायत पर कार्रवाई करने में ढिलाई दिखाई जा रही है। दूसरी ओर, शिक्षा विभाग ने भी गंभीरता दिखाने की बजाय पीड़ित शिक्षक को अन्य विद्यालय में अटैच कर मामले को रफा-दफा कर दिया।
न्याय और सम्मान राजनीतिक पहुँच वालों का
यह घटना बताती है कि आज न्याय और सम्मान राजनीतिक पहुँच वालों की बपौती बन चुके हैं। जिनके पास सत्ता या दबदबा है, उनकी शिकायतों पर तुरंत कार्रवाई होती है। वहीं साधारण शिक्षक या आम नागरिक न्याय की आस लगाए इंतजार ही करते रह जाते हैं। इसका असर समाज के मनोबल और शिक्षा व्यवस्था दोनों पर पड़ता है।
जरूरी है कि प्रशासन और पुलिस की जवाबदेही तय की जाए। शिक्षक केवल शिक्षा व्यवस्था के कर्मचारी नहीं, बल्कि समाज की नींव हैं। यदि उनका मान-सम्मान और सुरक्षा राजनीति से छोटी हो जाएगी, तो शिक्षा व्यवस्था का भविष्य और कमजोर होगा। सरकार और विभागों को ऐसे मामलों में त्वरित न्याय और ठोस कदम उठाने होंगे, तभी शिक्षक का गौरव और भरोसा बच सकेगा।