“साविद्या या विमुक्तये.” उपनिषद की वाणी में विद्या वही है जो मनुष्य को मुक्त करे। लेकिन माखन नगर में पिछले दो दशक से पढ़ाई-लिखार्ई की बेहतरी के नाम पर जो बंदोबस्त चल रहा है, उससे तो लगता है कि पवारखेड़ा खुर्द के सरकारी प्राइमरी स्कूल और वहां के मास्साब ने पूरी तरह से शिक्षा के बंधन से अपने आप को मुक्त ही कर लिया हैं और इस करेला जैसी व्यवस्था को नीम पर चढ़ाने की कसर अधिकारियों ने ऐसे शिक्षक पर कोई कार्यवाही नहीं करके पूरी कर ली।
बीस सालो कभी कभार देखा स्कूल का मुंह
हम बात कर रहे हैं शा. प्रा. शाला पवारखेड़ा खुर्द स्कूल की जहां पदस्थ शिक्षक चर्चा का विषय बना हुआ है। जिस शिक्षक राजेश मालवीय के बारे मे बताने जा रहे हैं वह विगत बीस वर्षों स्कूल कभी कभार गए। ज्यादा समय महानुभाव ने निर्वाचन कार्य को दिया। सैलरी लेते शिक्षा विभाग की लेकिन बजाते तहसील कार्यालय की ऐसे ही शिक्षकों ने विभाग को बदनाम करके रखा है। करे भी क्यों न इनकी तूती जो बोलती, इनसे अधिकारी तक डरते हैं। जब देनवा पोस्ट ने इन्वेस्टिगेशन किया तो पाया कि इनके नक्शे कदम पर तीन शिक्षक और चलते मिले जिन्होंने विभाग की आंखों में मिर्च झोंकने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिंकी मीना सात साल से स्कूल ही नहीं पहुंची। स्वेता मिश्रा चार साल से छुट्टी ओर मेडिकल के सहारे जॉब कर रही है। अब बात कर ले अजय इरपांचे अभी कुछ वर्षों से अपनी सेवा तहसील कार्यालय देना शुरू किया है। इन्हें तहसील कार्यालय में अटैच करने का श्रेय भी राजेश मालवीय को ही जाता है।
सम्बीलियन एवं इंक्रीमेंट में संशय
यह बात समझ से परे है कि जिस शिक्षक ने लगातार शिक्षकीय कार्य को किया ही नहीं उसका विभाग सम्बीलियन कैसे हो गया और गौर करने वाली बात यह है कि हर साल इंक्रीमेंट भी मिल रहा है। जबकि कोई भी विभाग अपने कर्मचारी को इंक्रीमेंट उसके अच्छे काम के लिए देता है। लेकिन इनका उत्कृष्ट कार्य निर्वाचन एवं तहसील की सेवा हैं। फिर भी विभाग इन्हे इंक्रीमेंट क्यों दे रहा है यह समझ नहीं आ रहा है।
आर टी आई में खुलासा 11 सालो में मात्र 182 दिन ही पढ़ाया
जब आरटीआई एक्टिविस्ट गोविंद द्वारा आरटीआई लगाकर उक्त शिक्षक के बारे में जानकारी ली गई तो मालूम चला कि वह विगत 10 सालों में मात्र 182 दिन ही स्कूल में अपनी सेवा दी। वहीं कुछ महीनो से जिला स्तरीय अधिकारी विकासखंड के समस्त स्कूलों का निरीक्षण कर रहे हैं लेकिन उक्त शिक्षक के स्कूल में जाने की हिम्मत कोई भी अधिकारी नहीं उठा पाया।
अधिकारियों में निर्वाचन का इतना डर की आदेश देखते ही नहीं
निर्वाचन शाखा का सारा कार्य शिक्षक राजेश मालवीय के हाथों में है। स्वयं के आदेश भी उसी के द्वारा निकाला जाता है। शिक्षा विभाग आदेश निर्वाचन के आदेश तक पढ़ने की जहमत तक नहीं उठाता। देनवापोस्ट यह ऐसे ही नहीं कह रहा क्योंकि जिस शिक्षक को निर्वाचन शाखा ने कभी रिलीव ही नहीं किया फिर भी बार-बार निर्वाचन शाखा में बुलाने के आदेश क्यों जारी होते रहते हैं। वही एक आदेश में तो वर्तमान तहसीलदार अनिल पटेल भी यह स्वीकारा है कि यह आदेश उनकी जानकारी के बिना साइन कराया गया है। शिक्षा विभाग निर्वाचन द्वारा जारी आदेश को कभी ठीक से पड़ता ही नहीं क्या आदेश सही है या गलत है को अपनी मौन स्वीकृति दे देता है। अभी 10 जनवरी 2025 शिक्षक अजय अपाचे का निर्वाचन शाखा से रिलीव आदेश जारी होता है। जिसमें तहसील कार्यालय 6 जनवरी 2025 को उन्हें शाला साल में उपस्थिति के निर्देश दिए थे लेकिन आदेश 10 जनवरी 2025 को जारी होता है कैसे? यह अपने आप में एक सवाल हैं।
समग्र शिक्षा अभियान में शिक्षकों को गैर-शिक्षा के कामों से बचाने के पर्याप्त इंतजाम हैं।लेकिन जिला स्तर की ब्यूरोक्रेसी इनका पालन नहीं कर रही है। जब ही जिला शिक्षा अधिकारी एसपीएस विसेन का जबाव यह है कि तहसील हमारे अंडर में नहीं आती आप कलेक्टर मैडम से बात करे, कि शिक्षक स्कूल क्यों नहीं आ रहे हैं।