
माखन नगर। दशहरा का पर्व हमेशा से अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक रहा है। हर वर्ष देशभर में रावण, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन कर यह परंपरा निभाई जाती है। किंतु इस वर्ष माखन नगर में आयोजित रावण दहन में एक अलग ही दृश्य देखने को मिला। यहाँ परंपरागत दस सिरों वाले रावण के स्थान पर केवल नौ सिरों वाला रावण (9 head ravan) जलाया गया। यह दृश्य उपस्थित जनसमूह के लिए आश्चर्य का कारण तो बना ही, साथ ही इसके पीछे छिपे सांकेतिक संदेश ने भी सबको गहन विचार करने पर मजबूर कर दिया।
नौ सिर वाला रावण(9 head ravan)परंपरा से हटकर एक नई सोच
आम तौर पर रावण के दस सिर बुराई के दस रूपों के प्रतीक माने जाते हैं। यही कारण है कि दशानन कहलाने वाले रावण का पुतला हर जगह दस सिरों के साथ तैयार किया जाता है। लेकिन माखन नगर के इस आयोजन ने परंपरा से हटकर एक नया प्रयोग किया। आयोजकों ने केवल नौ सिरों वाला रावण (9 head ravan) बनाया और उसका दहन किया।
यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर दस सिरों की जगह नौ सिरों का रावण (9 head ravan) क्यों? क्या यह मात्र एक संयोग था या इसके पीछे कोई गहरी सोच छिपी थी?
रावण के दस सिर – बुराइयों का प्रतीक
भारतीय संस्कृति में रावण के दस सिर किसी शारीरिक विचित्रता का प्रतीक नहीं हैं, बल्कि वे दस प्रकार की बुराइयों को दर्शाते हैं। यह बुराइयाँ मनुष्य और समाज को भीतर से खोखला करती हैं। परंपरागत व्याख्या के अनुसार ये दस बुराइयाँ निम्नलिखित हैं –
- काम – वासना
- क्रोध – गुस्सा
- मोह – अंधा लगाव
- लोभ – लालच
- मद – अहंकार
- मत्सर – ईर्ष्या
- स्वार्थ – निज हित साधना
- अन्याय – न्याय की अवहेलना
- अमानवीयता – निर्दयता, क्रूरता
- अहंकार – आत्ममुग्धता
इनमें से हर एक बुराई समाज और व्यक्ति को विनाश की ओर ले जाती है। यही कारण है कि दशहरे पर रावण दहन केवल परंपरा नहीं, बल्कि आत्ममंथन का अवसर भी माना जाता है।
नौ सिर वाला रावण (9 head ravan) – एक अनुत्तरित सवाल
जब माखन नगर में नौ सिर वाला रावण दहन किया गया, तो इसका सीधा अर्थ यह निकला कि समाज ने इन दस बुराइयों में से नौ (9 head ravan) पर तो विजय प्राप्त कर ली है, किंतु एक बुराई अभी भी शेष है।
यह प्रतीकात्मक प्रयोग दर्शाता है कि हमारी लड़ाई बुराइयों के खिलाफ अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुई है। हम कितनी भी प्रगति कर लें, लेकिन जब तक आखिरी बची हुई बुराई को नहीं मिटाते, तब तक विजय अधूरी है।
बची हुई वह “एक बुराई” कौन-सी है?
सबसे रोचक प्रश्न यही है कि आखिर नौ सिरों वाला रावण (9 head ravan) किस बुराई की ओर संकेत कर रहा है? आयोजकों ने भले ही इसका स्पष्ट उत्तर न दिया हो, लेकिन यह दर्शकों के लिए एक चिंतन का विषय बन गया।
संभव है कि यह बची हुई बुराई भ्रष्टाचार हो, जो आज समाज की सबसे बड़ी समस्या है।
संभव है कि यह अहंकार या स्वार्थ हो, जो हर अच्छे कार्य को बिगाड़ देता है।
संभव है कि यह असहिष्णुता और हिंसा हो, जिसने आधुनिक समाज की शांति छीन ली है।
इस प्रतीकवाद का सबसे बड़ा महत्व यही है कि यह लोगों को आत्ममंथन करने पर मजबूर करता है—“वह एक बुराई कौन-सी है जिसे हमने अभी तक नहीं छोड़ा?”
समाज के लिए संदेश
माखन नगर की इस पहल का सबसे बड़ा संदेश यही है कि बुराई का पूर्ण उन्मूलन तभी संभव है जब हम हर एक विकार पर विजय पाएं। यदि हम नौ बुराइयों को हराकर यह मान लें कि अब सब कुछ ठीक है, तो यह हमारी भूल होगी। क्योंकि जब तक एक भी बुराई शेष है, वह समाज को फिर से अंधकार की ओर धकेल सकती है।
यह प्रयोग हमें यह भी सिखाता है कि त्यौहार केवल उत्सव नहीं होते, बल्कि वे हमें आत्ममंथन का अवसर भी देते हैं।
सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व
रावण दहन का आयोजन सिर्फ आतिशबाज़ी या मनोरंजन का कार्यक्रम नहीं है। यह भारतीय संस्कृति की उस परंपरा का हिस्सा है, जिसमें समाज को हर वर्ष यह याद दिलाया जाता है कि बुराई चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः अच्छाई की विजय निश्चित है।
लेकिन माखन नगर का यह प्रयोग पारंपरिक संदेश से आगे बढ़कर हमें एक सामाजिक चेतावनी देता है। यह हमें बताता है कि बुराइयाँ आज भी जीवित हैं और हमें सतर्क रहना होगा।
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आधुनिक संदर्भ में रावण
यदि हम आज के समाज की ओर देखें, तो पाएँगे कि रावण की बुराइयाँ केवल पौराणिक पात्र तक सीमित नहीं हैं। वे आज भी हमारे चारों ओर मौजूद हैं—
काम आज इंटरनेट और सोशल मीडिया की अंधी दौड़ में नई शक्ल ले चुका है।
क्रोध सड़क पर बढ़ते झगड़ों और घरेलू हिंसा में दिखता है।
लोभ और स्वार्थ राजनीति और व्यापार में स्पष्ट दिखाई देते हैं।
अमानवीयता भीड़तंत्र और अपराधों में उजागर होती है।
इन परिस्थितियों में नौ सिर वाला रावण हमें यह याद दिलाता है कि हमारी लड़ाई जारी है।
माखन नगर का प्रयोग क्यों खास है?
यह आयोजन परंपरा से हटकर सृजनात्मक सोच प्रस्तुत करता है।
यह आम लोगों के बीच जागरूकता फैलाने का प्रयास है।
यह त्यौहार को केवल मनोरंजन तक सीमित न रखकर उसे सामाजिक सुधार का माध्यम बनाता है।
यह बच्चों और युवाओं को सोचने पर मजबूर करता है कि बुराई वास्तव में क्या है और उससे कैसे लड़ा जाए।
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माखन नगर में नौ सिर वाले रावण (9 head ravan) का दहन केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक गहरा संदेश है। यह बताता है कि अच्छाई की विजय का जश्न मनाते हुए भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि बुराई का उन्मूलन अधूरा है। जब तक आखिरी बुराई का अंत नहीं होता, तब तक हमारी विजय पूर्ण नहीं कही जा सकती।
यह प्रतीकात्मक (9 head ravan)प्रयोग हर उस व्यक्ति के लिए आईना है जो सोचता है कि वह बुराई से मुक्त है। वास्तव में, हम सभी के भीतर कहीं न कहीं एक रावण अब भी जीवित है। माखन नगर की इस अनोखी परंपरा ने हमें यह याद दिला दिया कि वास्तविक विजय आत्ममंथन और आत्मसंशोधन में है।